शिव जी की चालीसा | Shree Shiv Chalisa | शिव चालीसा का पाठ करने से प्रसन्न होते हैं महादेव | सम्पूर्ण शिव चालीसा पढ़ें

भगवान महादेव पर आधारित 40 छंद, चोपाई से बनी यह लोकप्रिय शिव चालीसा है |

श्री शिव चालीसा – Shiv Chalisa1

shiv Chalisa
Shree Shiv Chalisa

 

|| – दोहा – ||

 

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

|| – चौपाई – ||

जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ – 1

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥ – 2

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ -3

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ -4

मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ – 5

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ – 6

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥ – 7

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ – 8

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥ – 9

किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ – 10

तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ – 11

आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ -12

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥ – 13

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥ – 14

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ – 15

वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ – 16

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥ – 17

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥ – 18

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ – 19

सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ – 20

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥ – 21

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥ – 22

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥ – 23

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ – 24

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥ – 25

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥ – 26

मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥ – 27

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ – 28

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥ – 29

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥ – 30

शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥ – 31

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ – 32

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥ – 33

जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥ – 34

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥ – 35

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ – 36

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ – 37

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥ – 38

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ – 39

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ – 40

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥ – 41

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|| – दोहा – ||

नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण ॥

Shree Shiv Chalisa

श्री शिव चालीसा – Shiv Chalisa 2

अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार ।
बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार ॥

आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति -मुक्ति -दातार ।
करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार ॥

पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार ।
सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार ॥

पलक-पलक आशा भर्यो, रह्यो सुबाट निहार ।
ढरौ तुरन्त स्वभाववश, नेक न करौ अबार ॥

जय शिव शङ्कर औढरदानी ।
जय गिरितनया मातु भवानी ॥

सर्वोत्तम योगी योगेश्वर ।
सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर ॥

सब उर प्रेरक सर्वनियन्ता ।
उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता ॥

पराशक्ति – पति अखिल विश्वपति ।
परब्रह्म परधाम परमगति ॥

सर्वातीत अनन्य सर्वगत ।
निजस्वरूप महिमामें स्थितरत ॥

अंगभूति – भूषित श्मशानचर ।
भुजंगभूषण चन्द्रमुकुटधर ॥

वृषवाहन नंदीगणनायक ।
अखिल विश्व के भाग्य-विधायक ॥

व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर ।
रीछचर्म ओढे गिरिजावर ॥

कर त्रिशूल डमरूवर राजत ।
अभय वरद मुद्रा शुभ साजत ॥

तनु कर्पूर-गोर उज्ज्वलतम ।
पिंगल जटाजूट सिर उत्तम ॥

भाल त्रिपुण्ड्र मुण्डमालाधर ।
गल रुद्राक्ष-माल शोभाकर ॥

विधि-हरि-रुद्र त्रिविध वपुधारी ।
बने सृजन-पालन-लयकारी ॥

तुम हो नित्य दया के सागर ।
आशुतोष आनन्द-उजागर ॥

अति दयालु भोले भण्डारी ।
अग-जग सबके मंगलकारी ॥

सती-पार्वती के प्राणेश्वर ।
स्कन्द-गणेश-जनक शिव सुखकर ॥

हरि-हर एक रूप गुणशीला ।
करत स्वामि-सेवक की लीला ॥

रहते दोउ पूजत पुजवावत ।
पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत ॥

मारुति बन हरि-सेवा कीन्ही ।
रामेश्वर बन सेवा लीन्ही ॥

जग-जित घोर हलाहल पीकर ।
बने सदाशिव नीलकंठ वर ॥

असुरासुर शुचि वरद शुभंकर ।
असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर ॥

नम: शिवाय मन्त्र जपत मिटत सब क्लेश भयंकर ॥

जो नर-नारि रटत शिव-शिव नित ।
तिनको शिव अति करत परमहित ॥

श्रीकृष्ण तप कीन्हों भारी ।
ह्वै प्रसन्न वर दियो पुरारी ॥

अर्जुन संग लडे किरात बन ।
दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित मन ॥

भक्तन के सब कष्ट निवारे ।
दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे ॥

शङ्खचूड जालन्धर मारे ।
दैत्य असंख्य प्राण हर तारे ॥

अन्धकको गणपति पद दीन्हों ।
शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों ॥

तेहि सजीवनि विद्या दीन्हीं ।
बाणासुर गणपति-गति कीन्हीं ॥

अष्टमूर्ति पंचानन चिन्मय ।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग ज्योतिर्मय ॥

भुवन चतुर्दश व्यापक रूपा ।
अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा ॥

काशी मरत जंतु अवलोकी ।
देत मुक्ति -पद करत अशोकी ॥

भक्त भगीरथ की रुचि राखी ।
जटा बसी गंगा सुर साखी ॥

रुरु अगस्त्य उपमन्यू ज्ञानी ।
ऋषि दधीचि आदिक विज्ञानी ॥

शिवरहस्य शिवज्ञान प्रचारक ।
शिवहिं परम प्रिय लोकोद्धारक ॥

इनके शुभ सुमिरनतें शंकर ।
देत मुदित ह्वै अति दुर्लभ वर ॥

अति उदार करुणावरुणालय ।
हरण दैन्य-दारिद्रय-दु:ख-भय ॥

तुम्हरो भजन परम हितकारी ।
विप्र शूद्र सब ही अधिकारी ॥

बालक वृद्ध नारि-नर ध्यावहिं ।
ते अलभ्य शिवपद को पावहिं ॥

भेदशून्य तुम सबके स्वामी ।
सहज सुहृद सेवक अनुगामी ॥

जो जन शरण तुम्हारी आवत ।
सकल दुरित तत्काल नशावत ॥

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|| – दोहा – ||

बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार ।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार

तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय ।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय

दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार ।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार ॥

कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र ।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र ॥

|| – इति श्री शिव चालीसा सम्पूर्ण  – ||

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